समंदर को भी कभी…
अपनी महफ़िल में शरीक होने दो…
वो खारा भी हैं और गहरा भी हैं…
एक जाम पिलाकर कभी…
उसको भी तो बहकने दो…
एक घूंट लेहरों संग लेकर कभी…
खुद को भी किनारे पर झूमने दो…
चंद लफ़्ज़ों की शिकायत से ही सही…
कभी तो उस चाँद को भी रूठने दो…
अपनी तो खूब कही होगी तुमने…
कभी उसकी ख़ामोशी को भी तो कहने दो…
समंदर को भी कभी…
अपनी महफ़िल में शरीक होने दो…
~तरुण
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