एक दिन सवेरे-सवेरे जब मैं…
अपने आँगन के बाहर देखता हूँ…
एक जाने पहचाने से हसीन चेहरे को…
उसी रास्ते से गुज़रते हुए देखता हूँ…
देखकर मुझको थोड़ी ही दूर से…
होठों पर आयी उसकी मुस्कान को देखता हूँ…
आकर वो रुकती हैं जब मेरे आँगन के पास…
और एकदम से पूछती हैं ये एक सवाल…
कि तू यहाँ रहता हैं ?
मुस्कुराते हुए मैंने भी कह दिया…
हाँ मैं भी, और तेरा इन्तज़ार भी…
उसी लम्हें में फूट सी गई…
एक साथ हम दोनों की हसी…
ठीक से तो याद नहीं अब मुझे…
तकरीबन 7 साल बाद हूयी थी वो मुलाकात…
बातें तो बहुत थी, मग़र वक़्त ही नहीं था पास…
आँखें मिली, धड़कने भी तेज़ हूयी…
कुछ तो कहना था शायद दोनों को…
इसके पहले कुछ बयां कर पाते…
कह दिया उसने कि मुझे जाना हैं अभी तो…
शायद देर हो रही थी उसके कॉलेज को…
कल मिलते हैं ज़रूर…
कहकर चल पड़े कदम उसके…
साथ चलना चाहता था, मग़र किस हक़ से…
बस देखता रहा उसे…
एक बार फ़िर… आँखों से दूर होते…
वो दिन तो कैसे गुज़र गया, मालूम नहीं…
अब जो भी था…
बस इंतज़ार ही था…
कल की सुबह का…
ओर एक दिन का…
With love ~T@ROON
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