परिंदे के परों से…
टूट कर वो ज़मीं पर गिर गयी…
लगी हाथ जब इंसानों के…
तो एक कलम बन गयी…
नब्ज़ में अपनी, स्याही भरकर…
वो काग़ज़ पर उतर गयी…
इंसान के ख़्यालों का वो…
एक ज़रिया सा बन गयी…
कहानियाँ…नज़्में और किस्से…
बेपरवाह लिखती गयी…
लगा उसको फ़िर से, जैसे…
एक नयी ज़िंदगी मिल गयी…
कश्मकश भी कुछ ऐसी थी…
उस पंख के कलम की…
जो लिख तो सब कुछ गयी…
मग़र टूटी हूयी हैं वो किसी से…
बस यही बताना भूल गयी…
~तरुण
With Love ~T@ROON
Very nice poyem
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Thank you so much 🙏🙏
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बहुत ही सुंदर 👌👌👌
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शुक्रिया Ritu 🙏🙏👏👏😊
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