लिपट कर तेरे लिहाफ़ से…
मैं ये हिसाब कर लू…
जो हिस्से में था मेरे…
वो तेरे नाम कर दु…
उम्र भर के लिए…
तुझे एक मुक़ाम दे दू…
जो कह ना सका कभी…
वो सरेआम कह दू…
ये नहीं पता था कभी…
ऐसा इम्तहान भी देना होगा…
इस एक ज़िन्दगी में हमें…
अलग रहकर ही जीना होगा…
होगी ग़र वो दुनिया कहीं…
जहा रोशन अपना मकां होगा..
नहीं रहेंगी बंदिशें कहीं…
ऐसा कहीं अपना जहां होगा…
~तरुण
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