वक़्त लगता हैं…

वक़्त लगता हैं… उसे स्वीकारने में…
जो मनचाहा नहीं मिलता…
वक़्त लगता हैं… उसे अपनाने में…
जो कुछ ख़ास नहीं लगता…

वक़्त लगता हैं… उसे निभाने में…
जो कभी पास नहीं रहता…
वक़्त लगता हैं… उसे जानने में…
जो कभी साथ नहीं रहता…

वक़्त लगता हैं कभी कभी… जीने में भी…
और जीने की चाहत को समझने में भी…

ठोकरों से गिरकर उठने में भी…
बारिश को ज़मीं पर उतरने में भी…
पत्तों को पेड़ों से गिरने में भी…
परिन्दों को आसमाँ में उड़ने में भी…

सुबह को साँझ होने में भी…
रात को चाँद निकलने में भी…
गलतियों को माफ़ करने में भी…
ज़ख्मों को धीरे धीरे सिलने में भी…

वक़्त तो लगता हैं…
कहीं थोड़ा सा… तो कहीं थोड़ा सा ज्यादा…
मग़र वक़्त तो लगता हैं…
~तरुण

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