सवेरे-सवेरे हाथों में झोला लिए…
कुछ-कुछ ढूंढता हैं वो बचपन…
रास्तों पर भटकते नंगे पाँव लिए…
सपनों को पूरा करता हैं वो बचपन…
एक छोर से तैरता हुआ…
कभी काग़ज़ की नाव में वो बचपन…
कभी बारिश से भरे पोखरों में…
बेपरवाह उछलता वो बचपन…
कभी संदूको में ढूंढता…
अपना खोया हुआ वो बचपन…
कभी पतंगों सा उड़ता…
बेहिसाब वो बचपन…
कभी पापा की फटकार से…
सहमा हुआ वो बचपन…
कभी यारों की ललकार से…
झूमता हुआ वो बचपन…
तो कभी माँ के दुलार से…
झूलता हुआ वो बचपन…
ये बचपन ही तो असल ज़िंदगानी हैं…
बचपन के बाद तो ये ज़िंदगी…
बस एक कहानी हैं…
~तरुण
बचपन…

बहुत बढ़िया 👌
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Thank you so much Ritu. I am glad you liked it. 🙏🙏👏
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😊😊
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बचपन- जिंदगी के सुनहरे पल
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यक़ीनन… शुक्रिया 👏👏🙏🙏
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शानदार
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शुक्रिया 🙏🙏👏
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बिल्कुल सही कहा है, बचपन हमारे जीवन का सबसे अनमोल हिस्सा है, बहुत सुंदर अभिव्यक्त किया है ।👌🏼
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शुक्रिया अनिता जी 👏👏🙏🙏😊
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बिता अत्तित याद हमे
वो बचपन सुनहरा दिखा
पर बित गया रोक ना सके
आज तरस खुद पर आ रहा।।
काश लोटा सकता कोई वो पल
बहुत सुनहरे पल थे वहां
थी बुजुर्गों की छाया सर
कोई गम नही था वहाँ।।
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बहुत ही अच्छी
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Shukriya Anupama ji 🙏 🙏
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