बचपन…

सवेरे-सवेरे हाथों में झोला लिए…
कुछ-कुछ ढूंढता हैं वो बचपन…
रास्तों पर भटकते नंगे पाँव लिए…
सपनों को पूरा करता हैं वो बचपन…

एक छोर से तैरता हुआ…
कभी काग़ज़ की नाव में वो बचपन…
कभी बारिश से भरे पोखरों में…
बेपरवाह उछलता वो बचपन…

कभी संदूको में ढूंढता…
अपना खोया हुआ वो बचपन…
कभी पतंगों सा उड़ता…
बेहिसाब वो बचपन…

कभी पापा की फटकार से…
सहमा हुआ वो बचपन…
कभी यारों की ललकार से…
झूमता हुआ वो बचपन…
तो कभी माँ के दुलार से…
झूलता हुआ वो बचपन…

ये बचपन ही तो असल ज़िंदगानी हैं…
बचपन के बाद तो ये ज़िंदगी…
बस एक कहानी हैं…
~तरुण

12 thoughts on “बचपन…

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  1. बिता अत्तित याद हमे
    वो बचपन सुनहरा दिखा
    पर बित गया रोक ना सके
    आज तरस खुद पर आ रहा।।

    काश लोटा सकता कोई वो पल
    बहुत सुनहरे पल थे वहां
    थी बुजुर्गों की छाया सर
    कोई गम नही था वहाँ।।

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