इत्तेफ़ाक…

ग़र कभी इत्तेफ़ाक से…
मैं, तुम्हें बाज़ार में दिख जाऊ…
हाँ उसी बाज़ार में…
तो कहो, तुम मिलने आओगे…?

अगर तुम्हारा ज़वाब ना हैं ना…
तो मैं मान लूँगा…
कि तुम बंदिशों में हो…
और तुम अब वो नहीं हो…
जो तुम थी कभी…

अगर फिर भी तुम्हारा ज़वाब ना हैं ना…
तो मैं मान लूँगा…
कि कुछ हैं जो तुम्हें रोक रहा हैं…
कुछ हैं जिससे मायने बदल गए हैं…
अब भी तुम वो नहीं हो…
मग़र होना ज़रूर चाहती हो…

अगर कहीं कुछ ज़रा सा भी…
तुम्हारा ज़वाब हाँ हैं ना…
तो मैं मान लूँगा…
कुछ था… जो अब तक बाकी हैं…
तुम तो नहीं… मग़र तुम्हारे ख्याल बागी हैं…
अब भी तुम वो नहीं हो…
तुम हो तो सही… मग़र गुम हो कहीं…

ग़र कभी इत्तेफ़ाक से…
मैं, तुम्हें उस जहाँ में मिल जाऊँ…
जो तुम्हारे ख्यालों में हो…
जो तुम्हारा ही ख़्वाब हो…
और जहा सिर्फ़ हम दोनों ही हो…
तो कहो, तुम मिलने आओगे…?

~तरुण <T@ROON>

12 thoughts on “इत्तेफ़ाक…

Add yours

  1. rota raha dekh tujhe , nind na aayi mujhe,yaad aata wo din jab zagda karke nikal gayi , meri saari khosiya tere sang nikal gayi,saath chod ke gayi phir ek dafa na mili,tere bina maine puri zindagi jili,tu thi kitab jo kabhi mai pad nahi paya,tujhe apna mai bana nahi paya,adhura tha jaana adhura hu,tere bina karta malum nahi kaise gujara hu

    Liked by 1 person

Leave a comment

Start a Blog at WordPress.com.

Up ↑