कभी कभी सोचता हूँ…
कि वो दीवारें…
कितना कुछ जानती हैं ना…
मेरे बारे में…
कई अर्से से वहीँ हैं…
अब तो मैली भी हो गई हैं…
थोड़ी सी मग़र…
देखा हैं उन्होंने मुझे…
मेरे असल चेहरे को…
मेरे मन में उठी लेहरों को…
वो जानती हैं बहुत कुछ…
जो शायद कभी कहा नहीं जाएगा…
और कभी लिखा भी नहीं जाएगा…
फ़िर भी साथ हैं वो मेरे…
हर वक़्त…
एक घेरे में सँवार के रखा हैं…अब तक…
सबसे बचा के रखा हैं…अब तक…
मग़र अब वो टूटने लगी हैं…
दरारों में लिपटने लगी हैं…
रंगों को भूलने लगी हैं…
हाँ वहीँ दीवारें…
अब मुझसे कुछ कुछ कहने लगी हैं…
हाँ वहीँ दीवारें…
~तरुण
दीवारें…

कहीं ये दिवारों पर पड़ी दरारें मन के घाव तो नहीं दरसा रही🤔🤔
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हो सकता हैं ये भी एक पहलू 😊😊✌️👏
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पहलू में रह लूँ फिर भी दरारें दरारें ही रह जाती हैं
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अति उत्तम रचना 🌼🌼
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शुक्रिया Anushree 🙏🙏🙏👏😊
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