क्या ही होता जहाँ में अगर तू ना होता…
ना मैं आवारा बादल होता…
ना यूँ बेमौसम बरसता…
ना किसी अनजाने से मोड़ पर…
यूँ ही तेरी राहें तकता…
क्या ही होता जहाँ में अगर तू ना होता…
ना इस बंजारेपन से इश्क़ होता…
ना ही बावरा ये मेरा मन होता…
ना ही हवाओं में कोई रंग होता…
ना हर साँझ उस झरोखें से…
यूँ ही तेरी राहें तकता…
क्या ही होता जहाँ में अगर तू ना होता…
ना मुझे ये संगीत समझता…
ना मैं कोई गीत लिखता…
ना यूँ ही तेरे नाम को लेकर…
शब्दों की कोई पहेली बुनता…
क्या ही होता जहाँ में अगर तू ना होता…
~तरुण
क्या ही होता जहाँ में…

कुछ ना कुछ तो होता,यार!!बंजारे सी हवा कभी घर के अन्दर तो कभी बाहर होती;यहाँ ना सही वहाँ कहीं तो इंतजार होता……
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हाँ जी.. ठीक कहा आपने… शुक्रिया 🙏
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Most welcome.
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