एक परिंदा शाम होते होते…
एक दहलीज़ पर आकर रूक गया…
कुछ ना पाया आसमाँ में शायद…
फ़िर ज़मीं पर लौट गया…
वहाँ उसने एक पिंजरें को देखा…
पिंजरें में एक परिंदे को देखा…
परिंदे को दाना चुगते देखा…
फ़िर उसने आसमाँ को देखा…
फ़िर उसने एक फ़ैसला लिया…
पिंजरें के पास जाने का…
भूख का मारा था वो शायद…
वही एक चारा था खाने का…
छोड़ आसमाँ की ख्वाहिशों को…
उसने पिंजरें को चुन लिया…
जिसने उसको दाना दिया…
वो उसी के संग हो लिया…
एक परिंदा शाम होते होते…
एक दहलीज़ पर आकर रूक गया…
~तरुण
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