क्यूँ पहली बारिश के दरमियाँ…
तेरी थोड़ी याद सी आई…
क्यूँ इन साँसों के दरमियाँ…
भीनी भीनी आह सी आई…
कुछ पहला सा इश्क़ था…
बिखरा हुआ इन बूँदों में…
क्यूँ भीगते हुए ज़हन में…
तेरी कहानी फ़िर दोहराई…
क्यूँ पहली बारिश के दरमियाँ…
तेरी थोड़ी याद सी आई…
एक घूंट भर चाय की प्याली से…
मैंने अपनी प्यास बुझाई…
दूजे घूंट तक आते आते…
तेरी एक तस्वीर बनाई…
फ़िर बारिश के शोर में मैंने…
तेरी ख़ामोश निगाहें पढ़ पाई…
कुछ कमी सी थी दरमियाँ…
सोच के ये आँखे भर आई…
क्यूँ पहली बारिश के दरमियाँ…
तेरी थोड़ी याद सी आई…
~तरुण
पहली बारिश…

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