लिखकर ख़्वाब को एक चिट्टी में…
उनके लिबास में छुपाया हैं…
जो कुछ भी कहना था उनसे…
सब उसी ख़त में समाया हैं…
अब इन्तजार रहेगा उनका…
उस लिबास में आने का…
लिखा हुआ हैं जो ख़त में…
उसे संग साथ संजोने का…
फ़िर एक दिन उनको देखा…
उसी लिबास को पहने हुए…
वो पास से गुज़रे जैसे…
और हम थे पूरे सहमे हुए…
एक टूक भी ना मिल पाई…
नज़रें जो बेचैन थी…
क्या ख़बर हैं उनको…
हमारे लिखे हुए ख़त की…
वो गुज़रे और बस गुज़रे वहां से…
हम ठहरे और बस ठहरे वहां पे…
अब तो ज़हन में बस सवाल ही सवाल हैं…
ग़र इनको मिला नहीं तो ख़त का क्या हाल हैं…
अब ये नहीं पता कि ज़वाब किसके पास हैं…
बस सुकूं हैं कि लिबास उनके ही पास हैं…
~तरुण
लिबास…

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