समझ नहीं आ रहा कि…
इश्क़ करु या इश्क़ चुनू मैं…
जिसको जाना नहीं अब तक…
उसके संग कैसे रहूं मैं…
ये ख्याल सोच के ही एक ख्याल में हूँ…
कैसी रहेगी जिंदगी इस सवाल में हूँ…
अब कुछ भी नहीं रहा हैं बाकी…
मग़र ये फ़ैसला तो करना हैं…
दो राहों पर खड़ा ज़रूर हूँ…
मग़र मुसाफ़िर तो बनना हैं…
अब तू ही बस इशारा कर दे…
फ़िर उसी तरफ़ मुड़ूं मैं…
सुकूं और जुनूँ का भेद बस हैं…
तू जो कहदे बस उसी राह चलूँ मैं…
~तरुण
सवाल…

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