सुकूं…

ना जाने क्यूँ…
सुकूं को ढूँढती…
हर वो एक शक़्ल…
शाम होते होते…
फ़िर से उलझ जाती हैं…
किसी की तलाश में…
रात भर भटकती हैं…
सुबह होते होते…
थक हार कर…
फ़िर से निकल पड़ती हैं…
एक नयी सी शक़्ल लेकर…
उसी सुकूं को ढूँढने…
~तरुण

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