बचपन…

चलो आज फ़िर से एक पतंग लूटते हैं…
जो खो गया हैं बचपन… उसे फ़िर से ढूंढ़ते हैं…
शायद संजो के रखा हैं हम सबने उसे…
चलो आज फ़िर से बचपन की वो संदूक खोलते हैं…


देखो ज़रा उसमें क्या क्या मिलता हैं…
यादों का जैसे एक पिटारा सा खुलता हैं…
एक गिल्ली रखी हुई हैं टूटी फूटी सी…
बचपन की मार से कुटी कुटी सी…
और पास में देखो ये क्या रखा हैं…
माचिस के ताश की गड्डी के साथ एक जोकर रखा हैं…


और भी बहुत कुछ हैं क़ीमती सा उसमें…
कुछ पत्थर हैं सफ़ेद और कुछ काले से…
और कुछ कंचे भी हैं चमकीले से…
और ये छोटे छोटे नोटों की गड्डी किसकी हैं…
लगता हैं हर किसी की बचपन में ही रईसी हैं…


जरा थोड़ा सा बाज़ु में और देखो तो…
एक डायरी हैं और एक इंक पेन हैं…
सुख गई हैं ये इंक तो सारी…
मग़र डायरी में कुछ तो लिखा हैं…
अरे रहने दो उसे, मत खोलो, कुछ मत पढ़ो…
बचपन का प्रेम और प्रेम पत्र अक्सर…
इन्हीं पन्नों में दबे हुए महफ़ूज़ रहते हैं… और घोर से अगर देखो तो… एक गुलाब का फूल दबा हुआ हैं इस डायरी में… ना जाने कितनी ही ऐसी बचपन की मोहब्बतें… सुख कर इन काग़ज़ों में बिखरी हुई रह गई…


ज़रा सा और टटोलों तो…
कुछ तो और मिलेगा इसमें…
कुछ रंग बिरंगे धागे, कुछ अंगूठियां,
कुछ छल्ले चाबियों के… और कुछ धुंधली सी तस्वीरें… एक बंदूक भी हैं… बिना गोलियों की… और एक विडिओ गेम हैं… बिना बैटरी का…
और ये टायर गैंग का क्या मतलब हैं…
लगता हैं किसी गैंग के कच्चे पक्के खिलाड़ी रहे होंगे…

और ये आख़िर में क्या छुपा हुआ हैं…
थोड़ा सा कुरेद के देखो तो…
थोड़ा और, थोड़ा सा और…
अरे यहां तो हम सब का बचपन दबा हुआ हैं…
ये कोई मामूली सा एक वक़्त नहीं हैं…
ये हमारी उम्र का एक पड़ाव हैं…
थोड़ा खट्टा, थोड़ा मीठा…
थोड़ा तीखा…और थोड़ा सा नमकीन भी हैं…
ये हमारे बचपन का जहान हैं…
चाहे जैसा भी गुज़रा हो हम सबका बचपन…
बचपन तो हम सबका महान हैं…

~तरुण

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