बेख़ुदी…

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ख़र्च हो रही ज़िंदगी…

ख़्वाहिशो के दाम पर…

हस रही हैं बेबसी…

उम्र यू तमाम पर…

बिक रही हैं बंदगी…

जरूरतों के नाम पर…

हो रही शर्मिन्दगी…

अपनों के काम पर…

मिल रही आवारगी…

इश्क़ के मुक़ाम पर…

उठ रहे सवाल हैं…

जवाबों की आस पर…

जल रही हैं आग ये…

बुझाने को प्यास भर…

दिख रहा आकाश हैं…

तू बादलों को पार कर…

कर के ख़ुद से बेख़ुदी…

तू ख़ुद की तलाश कर…

~तरुण

3 thoughts on “बेख़ुदी…

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  1. एक पत्थर तो तबियत से उछालो ,यार!! कौन कहता है कि आसमान में छेद नहीं होता….आपकी बेखुदी उसी पतथर की तरह है।बहुत सुन्दर रचना🌹

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