काफ़ी हैं इतना…

काफ़ी हैं इतना…
कि अगर तू किसी को ज़ुदा होते हुए देखें और…
तुझे अपनी कहानी याद आ जाए…
काफ़ी हैं इतना…
कि तू कोशिश भी करें कि वो…
वो गलतियाँ ना करें जो हमने की थी कभी…
काफ़ी हैं इतना…
तू कभी उस मोड़ से भी गुज़रे…
और चंद लम्हों के लिए ही सही…
तू अगर उस रास्ते को देखने की कोशिश करें…
जहा कभी तू और मैं साथ साथ चलते थे…
काफ़ी हैं इतना…
कि कभी ग़लती से भी तू बारिश में भीग जाए…
और तुझे ओर भीगने का मन करें…
मग़र तू किसी छाँव में लौट जाए…
और तेरी परछाई बारिश में ही रह जाए…
जो तेरे मन को भीगा कर जाए…
काफ़ी हैं इतना…
कि किसी रात तू तारों को तकती रहें…
और कोई एक तारा टूट जाए…
तो बस इतना ख़्याल करना…
कि तू वो तारा मुझे समझ लेना…
जो अभी टूट रहा हैं… और टूटता ही रहेगा…
ताकि तेरे ओर क़रीब आ सके…
काफ़ी हैं इतना…
~तरुण

2 thoughts on “काफ़ी हैं इतना…

Add yours

Leave a comment

Start a Blog at WordPress.com.

Up ↑