मुलाकात…

उगते हुए सूरज की रोशनी में…
एक नयी ज़िंदगी ढूंढता हूँ…
पत्तों पर पड़ी औंस की बूँदों से…
उनका हाल पूछता हूँ…
रास्तों पर भटकते हुए फूल के…
खिलने का इंतज़ार करता हूँ…
कोई मिल जाए अजनबी तो उससे…
बेहिसाब बातें करता हूँ…
टकरा जाऊ ग़र सर्द हवाओं से तो…
उनका ठिकाना पूछता हूँ…
बादल में ग़र छुपी हूयी हो बारिश…
तो बरसने को कहता हूँ…
ईधर उधर फिरता हूँ…
खानाबदोश की तरह रहता हूँ…
दर रोज़ असल ज़िन्दगी से मैं….
एक मुलाकात करता हूँ…
~तरुण

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