बनारस की सुबह…
कुछ कुछ मैली सी…तो कुछ धुँधली सी…
गंगा की तरह…कुछ कुछ भीगी सी…
अस्सी में जल रहीं… कोई धूप हो जैसे…
घाट पर ठहरी हुयी… कोई नाव हो जैसे…
पंछियों ने छेड़ा हो…कोई राग हो जैसे…
किनारे पे बहती हूयी…कोई राख हो जैसे…
आसमाँ में गूँजता हो…कोई नाद हो जैसे…
इंसानों में रमता हो… कोई भगवान हो जैसे…
गलियों में दौड़ता… कोई बचपन फ़िर से…
ठंडीयों में ओढ़ता… कोई मफलर फ़िर से…
रंग बनारसी पहने हुए…कुछ यूँ शहर को देखा हैं…
गंगा में नहाकर…पाप पुण्य की…
परछाई में ख़ुद को देखा हैं…
~तरुण
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