फ़िर वहीँ निशाँ…

मैं फ़िर लौट आया हूँ…

तेरे ही साहिल पर…
एक बरस के बाद…
होगी गुफ़्तगू थोड़ी सी…
आज तो तेरे साथ…
निशाँ छोड़े थे कुछ मैंने…
मिटा दिए हैं जो तूने…
अपनी लहरों के साथ…

मैं फ़िर छोड़ जाऊंगा…
तेरे लिए वहीं एक काम…
तू मिटाते रहना फ़िर से…
अपनी लहरों के साथ…

मैं बनाता रहूँगा…
जब भी लौट कर आऊंगा…
अपनी लकीरों से…
फ़िर वहीँ निशाँ…
~तरुण

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